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ग़ज़ल
'नसीम' 'अख़्तर' कहाँ हैं अब वो जज़्बों से भरी रातें
हमें अब अपने अश्कों की रवानी याद आती हे
नसीम अख्तर
ग़ज़ल
ये रंग-ओ-बू हैं कुछ दिन के नज़ारों का भरोसा क्या
बहारें कल कहाँ होंगी बहारों का भरोसा क्या
नसीम अख्तर नसीम
ग़ज़ल
जहाँ में होती हैं लोगों की हाजतें क्या क्या
लिखी हैं चेहरों पे उन के इबारतें क्या क्या
नसीम अख्तर
ग़ज़ल
मताअ'-ए-हिज्र ले कर इन अँधेरों से निकल जाओ
मिरे दामन के दाग़ो रौशनी में अब तो ढल जाओ
नसीम अख्तर
ग़ज़ल
सर-ए-मिज़्गाँ जो अख़्तर बन के चमके थे 'नईम-अख़्तर'
मैं अपनी ज़िंदगी उन आँसुओं के नाम लिक्खूंगा
नईम अख़्तर
ग़ज़ल
ऐ नसीम-ए-सहरी हम तो हवा होते हैं
दम जो घुटता है मोहब्बत में ख़फ़ा होते हैं
वाजिद अली शाह अख़्तर
ग़ज़ल
कैसे समझाऊँ नसीम-ए-सुब्ह तुझ को क्या हूँ मैं
फूल के साए में मुरझाया हुआ पत्ता हूँ मैं